मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ.
एक जंगल है तेरी आँखों में मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ !
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एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना !
..... मुनव्वर राना
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सुना है लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं
इसलिए अपनी आँखों को झुकाए रखना !
.... अख़्तर होशियारपुरी
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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से !
........ जाँ निसार अख़्तर
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ये आईने नही दे सकते तुम्हे तुम्हारी खूबसूरती की सच्ची ख़बर,
कभी मेरी इन आँखों में झांक कर देखो की कितनी हसीन हो तुम !
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मुझसे जब भी मिलो नजरें उठाकर मिलो,
मुझे पसंद है अपने आप को तुम्हारी आँखों में देखना !
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आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है !
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नींद को आज भी शिकवा है मेरी आँखों से ,
मैंने आने न दिया उसको कभी तेरी याद से पहले !
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तुम्हारी आँखों की तौहीन है, ज़रा सोचो
अगर तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है !
..... मुनव्वर राना
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झील अच्छा, कँवल अच्छा के जाम अच्छा है,
तेरी आँखों के लिए कौन सा नाम अच्छा है !
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