Friday, December 14, 2018

MAA SHAYARI


                मेरी खातिर तेरा रोटी पकाना याद आता है,
अपने हाथो को चूल्हे में जलाना याद आता है।
          वो डांट-डांट कर खाना खिलाना याद आता है,
मेरे वास्ते तेरा पैसा बचाना याद आता है।
      कही हो जाये ना घर की मुसीबत लाल को मालूम,
छुपा कर तकलीफें तेरा मुस्कुराना याद आता है।
          जब आये थे तुझे हम छोड़ कर परदेश मेरी माँ,
मुझे वो तेरा बहुत आंसू बहाना याद आता है।


तेरे क़दमों में ये सारा जहां होगा एक दिन,
माँ के होठों पे तबस्सुम को सजाने वाले।


किसी भी ​मुश्किल का अब किसी को हल नहीं मिलता,
​शायद अब घर से कोई माँ के पैर छूकर नहीं निकलता​।


उमर भर तेरी मोहब्बत मेरी खिदमतगार रही माँ,
मैं तेरी खिदमत के काबिल जब हुआ तू चली गयी माँ।


सबकुछ मिल जाता है दुनिया में मगर,
याद रखना की बस माँ-बाप नहीं मिलते,
मुरझा कर जो गिर गए एक बार डाली से,
ये ऐसे फूल हैं जो फिर नहीं खिलते।


रूह के रिश्तों की ये गहराइयाँ तो देखिये,
चोट लगती है हमें और चिल्लाती है माँ,
हम खुशियों में माँ को भले ही भूल जायें,
जब मुसीबत आ जाए तो याद आती है माँ।


चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।

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